PATANJALI



पतंजलि अथवा 'पतञ्जलि' योगसूत्र के रचनाकार हैं, जो हिन्दुओं के छः दर्शनों-(न्यायवैशेषिकसांख्ययोगमीमांसावेदान्त) में से एक है। भारतीय साहित्य में पतंजलि के लिखे हुए तीन मुख्य ग्रन्थ मिलते है-योगसूत्रअष्टाध्यायी पर भाष्य और आयुर्वेद पर ग्रन्थ। पतंजलि को नमन करते हुए भृतहरि ने अपने ग्रन्थ 'वाक्यपदीय' के प्रारम्भ में निम्न श्लोक लिखा है-
योगेन चित्तस्य पदेन वाचां, मलं शरीरस्य च वैद्यकेन।
योऽपाकरोत् तं प्रवरं मुनीनां, पतंजलि प्रांजलिरानतोऽस्मि।।
अर्थ- योग से चित्त का, पद (व्याकरण) से वाणी का व वैद्यक से शरीर का मल, जिन्होंने दूर किया, उन मुनि श्रेष्ठ पतंजलि को मैं अंजलि बद्ध होकर नमस्कार करता हूँ। महर्षि पाणिनि ने 'अष्टाध्यायी' की रचना की जिसमें व्याकरण के नियम हैं। ये सूत्र अत्यन्त संक्षिप्त हैं। उनका अर्थ जानने के लिए अर्थ बोधक विवेचन की आवश्यकता प्रतीत होती है।
पतंजलि योगदर्शन के प्रमाणित सूत्र योगसूत्र नाम से विख्यात हैं। इन योगसूत्रों का रचनाकार पतंजलि मुनि हैं। योगसूत्र के चार पद (विभाग) हैं। सूत्रों की कुल संख्या एक सौ पिच्यानवे है। पादों के नाम समाधिपाद, साधनापाद, विभूतिपाद और कैवल्यपाद हैं। विषय के अनुसार पादों के नाम रखे गये हैं, तथा प्रचलित हो गये हैं। प्राचीन परम्परा मानती है कि इसी पतंजलि ने पाणिनि मुनि के व्याकरण सूत्र पर सविस्तार तथा मनोरम और विविध विषयों का अभिप्राय विशद करते हुए महाभाष्य लिखा, इतना ही नहीं, वैद्यक शास्त्रांतर्गत चरक संहिता का संस्करण भी किया। प्राचीन वाङ्मय में उपलब्ध अनेक श्लोक और अनेक उल्लेख इस बात का समर्थन करते हैं कि उपविनिर्दिष्ट ग्रन्थों का रचयिता एकमेव पतंजलि ही है। उदाहरणार्थ निम्नांकित श्लोक द्रष्टव्य हैं। 
ध्न्यवाद 

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